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गुनह करेंगे / अशोक चक्रधर

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|रचनाकार=अशोक चक्रधर
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{{KKCatKavita}}<poem>
हम तो करेंगे
 
गुनह करेंगे
 
पुनह करेंगे।
 
वजह नहीं
 
बेवजह करेंगे।
 
कल से ही लो
 
कलह करेंगे।
 
जज़्बातों को
 
जिबह करेंगे
 
निर्लज्जों से
 
निबह करेंगे
 
सुलगाने को
 
सुलह करेंगे।
 
हम ज़ालिम क्यों
 
जिरह करेंगे
संबंधों में
 
गिरह करेंगे
 
रस विशेष में
 
विरह करेंगे
 
जो हो, अपनी
 
तरह करेंगे
 
रात में चूके
 
सुबह करेंगे
गुनह करेंगे
 
पुनह करेंगे
</poem>
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