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हिंदी की दुर्दशा / काका हाथरसी

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|रचनाकार=काका हाथरसी
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[[Category:हास्य रस]]
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बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य
 
सुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य
 
है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा-
 
बनने वालों के मुँह पर क्या पड़ा तमाचा
 
कहँ ‘ काका ' , जो ऐश कर रहे रजधानी में
 
नहीं डूब सकते क्या चुल्लू भर पानी में
 
 
पुत्र छदम्मीलाल से, बोले श्री मनहूस
 
हिंदी पढ़नी होये तो, जाओ बेटे रूस
 
जाओ बेटे रूस, भली आई आज़ादी
 
इंग्लिश रानी हुई हिंद में, हिंदी बाँदी
 
कहँ ‘ काका ' कविराय, ध्येय को भेजो लानत
 
अवसरवादी बनो, स्वार्थ की करो वक़ालत
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