भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाग्रत / सियाराम शरण गुप्त

832 bytes added, 02:56, 29 अक्टूबर 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>देखा, - देख …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>देखा, - देख नहीं सकता कुछ,
अन्धकूप का है घेरा।
यहाँ कहाँ आ पड़ा हाय रे!
यह मैं दुर्विधि का प्रेरा?

व्यर्थ हुआ क्या साधन सारा?
सर्प - रज्जु का भी न सहारा,
भगवन, हा! यह कैसी कारा?

ऎं यह क्या! - मैं खड़ा हो गया;
कहाँ गया वह भय मेरा
ओ जागृत वह स्वप्न मात्र था
पथ है खुला पड़ा तेरा!</poem>
750
edits