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जब भी तन्हाई से घबरा के / सुदर्शन फ़ाकिर
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10:33, 26 नवम्बर 2006
उन पे तूफ़ाँ को भी अफ़सोस हुआ करता है <br>
वो
सफ़िने
सफ़ीने
जो किनारों पे उलट जाते हैं <br><br>
हम तो आये थे रहें शाख़ में फूलों की तरह <br>
तुम अगर हार समझते हो तो हट जाते हैं <br><br>
Lalit Kumar
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