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जो खड़ा है तोड़ कारागार की दीवार, मेरा देश है।आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान।
काल की गति फेंकती किस पर नहीं अपना अलक्षित पाश आज़ादी का आया हैपहला जन्म-दिवस,सिर झुका कर बंधनों को मान जो लेता वही बस दास है,थे विदेशी के अपावन पग पड़े जिस दिन हमारी भूमि उत्साह उमंगों परपाला-सा रहा बरस,हम उठे विद्रोह :::यह उस बच्चे की लेकर पताका साक्षी इतिहास सालगिरह-सी लगती है;एक जिसकी मां उसको जन्मदान करते ही संघर्ष दाहर से जवाहर तक बराबर है चला,बसजो कि सदियों में नहीं बैठा कभी भी हार, मेरा देश है।:::कर गई देह का मोह छोड़ स्वर्गप्रयाण।जो खड़ा है तोड़ कारागार की दीवार, मेरा देश है।:::आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान।
जो कि सेना साज आए चूर मद में हिन्द किस को करने फ़तहबापू की नहीं आ रही आज याद,किसके मन में है आज उनके नाम बाकी रह गई है कब्र भर की बस जगहनहीं जागा विषाद,किन्तु वह आजाद होकर शान :::जिसके सबसे ज्यादा श्रम यत्नों से आईआजादी; उसको ही खा बैठा है विश्व के आगे खड़ाप्रमाद,और होता जा रहा हि शक्ति से संपन्न हर शामो-सुबह,झुक रहे :::जिसके चरण में पीढ़ियों के गर्व को भूले हुए,सैकड़ों राजोंशिकार हैं दोनों हिन्दू-नवाबों के मुकुट-दस्तार, मेरा देश है।मुसलमान।जो खड़ा है तोड़ कारागार की दीवार, मेरा देश है।:::आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान।
कैसे हम हुए आजाद तो देखा जगत ने एक नूतन रास्ताउन लाखों को सकते है बिसार,सैकड़ों सिजदे उसे, जिसने दिया इस पंथ का हमको पता,जबकि नफ़रत का ज़हर फैला हुआ था जातियों के बीच में,प्रेम पुश्तहा-पुश्त की ताक़त गया बलिदान से अपने जमाने धरती को बता;कर नमस्कारमानवों के शान्ति-सुख की खोज :::जो चले काफ़िलों में नेतृत्व करने मीलों के , लिएआसदेखता है एक टक जिसको सकल संसार, मेरा देश है।कोई उनको अपनाएगा बाहें पसार—:::जो खड़ा है तोड़ कारागार की दीवारभटक रहे अब भी सहते मानापमान, मेरा देश है।:::आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान।
जाँचते उससे हमें जो कश्मीर और हैदराबाद का जन-समाजआज़ादी की कीमत देने में लगा आज हम हैं, वे हृदय के क्रूर हैं:::है एक व्यक्ति भी जब तक भारत में गुलामअपनी स्वतंत्रता का है हमको व्यर्थ नाज़,हम गुलामी की वसीयत कुछ उठाने :::स्वाधीन राष्ट्र के लिए मजबूर देने हैं,हमको प्रमाण।:::आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान। पर हमारी आँख में है स्वप्न ऊँचे आसमानों के जगेआज उचित उन वीरों का करना सुमिरन,जानते हम हैं कि अपने लक्ष्य जिनके आँसू, जिनके लोहू, जिनके श्रमकण,:::से हम दूर हैंहमें मिला है दुनिया में ऐसा अवसर, हम दूर हैं;बार ये हट जायेंगेतान सकें सीना, आवाज़ तारों की पड़ेगी कान मेंऊँची रक्खें गर्दन,है :::आज़ाद कंठ से आज़ादी का करें गान।:::आज़ादी का दिन मना रहा जिसको परम उज्जवल भविष्य पुकार, मेरा देश है।हिन्दोस्तान। सम्पूर्ण जाति के अन्दर जागे वह विवेक--जो खड़ा है तोड़ कारागार बिखरे हैं, हो जाएं मिलकर पुनः एक,:::उच्चादर्शों की दीवारओर बढ़ाए चले पांवपदमर्दित कर नीचे प्रलोभनों को अनेक, मेरा देश है।:::हो सकें साधनाओं से ऐसे शक्तिमान,:::दे सकें संकटापन्न विश्व को अभयदान।:::आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान।
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