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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>'''उँचाई -१''' …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>'''उँचाई -१'''
तुम आसमान की फुनगी हो
मेरे दिल नें तुम्हें
इतनी ही उँचाई पर पाया था..
'''उँचाई -२'''
इतनी उँचाई पर उडती हुई चिडियाँ
मुझे बौना ही समझती होगी
काश कि उसे बता पाता
कि मैं इस धरती पर हूँ
लेकिन इस दुनियाँ का नहीं हूँ..
'''उँचाई -३'''
आओ मेरा कत्ल कर दो
कि मुझे इतनी उँचाई चाहिये है
जहाँ खुद से ओझल हो जाऊं..
'''उँचाई -४'''
एडियों के बल उचक कर
और हथेलियाँ पूरी खोल कर भी
तुम्हें छू नहीं पाता
और तुम किसी भी पल मुझसे दूर नहीं..
'''उँचाई -५'''
तुम्हारी नज़रों से गिर कर
और अपनी नज़रों से फिर गिर कर
मेरा मैं इतने उँचे जा बैठा है
कि अब हथेलियों में नहीं आता..
'''उँचाई -६'''
मेरी पीठ से चढ कर
मेरे सर पर जा बैठा
फिर कूद कर सातवें आसमान में
मेरा मन लौट नहीं आता
लगातार चीख रहा है
कि दिल में दिल ही रहेगा
या मैं कूद कर जान दे दूं अपनीं.
'''उँचाई -७'''
मुझसे उँची मेरी आशा
उससे उँचा मेरा गम
मैं अपना बौनापन ले कर
तनहाई के साथ चला हूँ
पर्बत-पर्बत
शायद तुम तक आ पहुँचूंगा
२९.०५.१९९७
</poem>
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|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>'''उँचाई -१'''
तुम आसमान की फुनगी हो
मेरे दिल नें तुम्हें
इतनी ही उँचाई पर पाया था..
'''उँचाई -२'''
इतनी उँचाई पर उडती हुई चिडियाँ
मुझे बौना ही समझती होगी
काश कि उसे बता पाता
कि मैं इस धरती पर हूँ
लेकिन इस दुनियाँ का नहीं हूँ..
'''उँचाई -३'''
आओ मेरा कत्ल कर दो
कि मुझे इतनी उँचाई चाहिये है
जहाँ खुद से ओझल हो जाऊं..
'''उँचाई -४'''
एडियों के बल उचक कर
और हथेलियाँ पूरी खोल कर भी
तुम्हें छू नहीं पाता
और तुम किसी भी पल मुझसे दूर नहीं..
'''उँचाई -५'''
तुम्हारी नज़रों से गिर कर
और अपनी नज़रों से फिर गिर कर
मेरा मैं इतने उँचे जा बैठा है
कि अब हथेलियों में नहीं आता..
'''उँचाई -६'''
मेरी पीठ से चढ कर
मेरे सर पर जा बैठा
फिर कूद कर सातवें आसमान में
मेरा मन लौट नहीं आता
लगातार चीख रहा है
कि दिल में दिल ही रहेगा
या मैं कूद कर जान दे दूं अपनीं.
'''उँचाई -७'''
मुझसे उँची मेरी आशा
उससे उँचा मेरा गम
मैं अपना बौनापन ले कर
तनहाई के साथ चला हूँ
पर्बत-पर्बत
शायद तुम तक आ पहुँचूंगा
२९.०५.१९९७
</poem>