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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>पंख कहाँ स…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>पंख कहाँ से लाऊँ मैं!
अरे, पैर ही क्या कुछ कम हैं!
क्यों न अभी बढ जाऊं मैं?
उत्तरीय का क्या, यह तनु भी
क्षत छिन्न हो जाने दूँ;
इन शत शत काँटों में बिंध कर
लक्क्ष लाभ निज पाऊँ मैं।
गह्वर टीले इधर उधर हैं,
मुझको पथ देने को ही;
अपने इन पदचिन्हों पर ही
नूतन मार्ग बनाऊँ मैं!
कुछ हो, पैर बढाऊँ मैं!
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>पंख कहाँ से लाऊँ मैं!
अरे, पैर ही क्या कुछ कम हैं!
क्यों न अभी बढ जाऊं मैं?
उत्तरीय का क्या, यह तनु भी
क्षत छिन्न हो जाने दूँ;
इन शत शत काँटों में बिंध कर
लक्क्ष लाभ निज पाऊँ मैं।
गह्वर टीले इधर उधर हैं,
मुझको पथ देने को ही;
अपने इन पदचिन्हों पर ही
नूतन मार्ग बनाऊँ मैं!
कुछ हो, पैर बढाऊँ मैं!
</poem>