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[[Category:पद]]
<poem>सुघर सलोने स्याम सुंदर सुजान कान्ह,::::करुना-निधान के बसीठ बनि आए हौ। 
प्रेम-प्रनधारी गिरधारी को सनेसो नाहिं,
::::होत हैं अंदेश झूठ बोलत बनाए हौ॥ 
ज्ञान गुन गौरव-गुमान-भरे फूले फिरौ,
::::बंचक के काज पै न रंचक बराए हौ। 
रसिक-सिरोमनि को नाम बदनाम करौ,
::::मेरी जान ऊधो कूर-कूबरी पठाए हौ॥  
</poem>
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