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लकीर के फ़कीर / अजित कुमार

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|संग्रह=अंकित होने दो / अजित कुमार
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हम फ़कीर हैं इस लकीर के ।
 
:यह लकीर बच्चे की गुड़िया,
 
:यह लकीर जादू की पुड़िया,
 
:खूसट बुढिया है लकीर यह,
 
:सदा सुहागिन की यह चुड़िया,
 
मन्त्र नहीं इसके काटे का,
 
बीत गये अब दिन कबीर के ।
 
:जो लकीर कबिरा ने तोड़ी,
 
:वह रवीन्द्र ने फिर से जोड़ी,
 
:‘कबिरा’ को ‘कबीर’ बनवाया ।
 
:-ऐसी थी जो पुख्ता-पोढी-
 
हवामहल के रहनेवालो ।
 
क्या जानो सुख उस कुटीर के ।
 
:श्रवण, कीर्तन, जप-तप नाना
 
:से रहस्य हमने यह जाना-
 
:शरणागत को मुक्ति मिलेगी,
 
:विद्रोही को नहीं ठिकाना ।
 
बड़े पुराने पंडे हैं हम
 गगगंग-जमुन के पुण्य तीर के ।  
हम फ़कीर हैं इस लकीर के ।
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