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|संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार
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और सब अस्थिर
मगर आकाश सुस्थिर है ।
अचिर सब है,
शून्य का, पर, भाव यह चिर है ।
नभ असीम, अपार का
वैभव अदृष्ट, अमाप;
मनुज है ऊँचा बहुत,
पर यहाँ नतशिर है ।
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