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दो निजी कविताएँ / अजित कुमार

No change in size, 15:22, 1 नवम्बर 2009
|संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार
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<poem>
'''1
 
ये जो चेहरे पर खिंची लकीरें हैं…
 
:::ये हँसने से, गाने से,
 
:::गाते रहने से
 
:::अंकित होनेवाली तस्वीरें हैं ।
 
ये जो अपनी वय से ज़्यादा
 
दिखनेवाले, माथे पर के
 
टेढे-मेढे बल हैं—
 
:::ये, वे सारे पल हैं,
 
:::जो हमने बाँट दिए,
 
:::या आँखों-आँखों में ही
 
:::रखकर काट दिए ।
 
सबकी निगाह में ‘बोझ’—
 
वही तो मेरे संबल हैं ।
 
जो माथे पर टेढे-मेढे, आड़े-तिरछे
 
बल हैं ।
 
 
'''2
 
 
पहले ही जैसी शान्त-सहज
 
जिज्ञासा आँखों में ।
 
‘जो व्यक्त नहीं की गई’—
 
खुशी कुछ ऐसी होंठों पर ।
 
सब कुछ तो बदल गया
 
पर
 
मुख का भाव नहीं बदला ।
 
संघर्ष, घुटन,
 
हारी बाज़ी, लाचारी ।
 
पर
 
जीवन जीने का चाव नहीं बदला ।
 
सब कुछ तो बदल गया
 
पर मुख का भाव…।
</poem>
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