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ये मेघ साहसिक सैलानी / अज्ञेय

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|रचनाकार=अज्ञेय
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ये मेघ साहसिक सैलानी!
ये तरल वाष्प से लदे हुए
द्रुत साँसों से लालसा भरे
ये ढीठ समीरण के झोंके
कंटकित हुए रोएं तन के
किन अदृश करों से आलोड़ित
स्मृति शेफाली के फूल झरे!
ये मेघ साहसिक सैलानी! <br>ये तरल वाष्प से लदे हुए <br>द्रुत साँसों से लालसा भरे <br>ये ढीठ समीरण के झोंके <br>कंटकित हुए रोएं तन के <br>झर झर झर झर किन अदृश करों से आलोड़ित <br>अप्रतिहत स्वर स्मृति शेफाली के फूल झरेजीवन की गति आनी-जानी! <br><br>
झर - नदी कूल के झर नरसल झर झर <br>- उमड़ा हुआ नदी का जल अप्रतिहत स्वर <br>ज्यों क्वारपने की केंचुल में जीवन यौवन की गति आनी-जानी! <br><br>उद्दाम प्रबल
झर - <br> नदी कूल के झर नरसल <br>दूर आड़ में झुरमुट की झर - चातक की करूण कथा बिखरी उमड़ा हुआ नदी का जल <br>ज्यों क्वारपने चमकी टिटीहरी की केंचुल गुहार झाऊ की साँसों में <br>सिहरी मिल कर सहसा सहमी ठिठकीं वे चकित मृगी सी आँखडि़याँ झर!सहसा दर्शन से झंकृत यौवन इस अल्हड़ मानस की गति उद्दाम प्रबल <br><br>कड़ियाँ!
झर - <br> दूर आड़ में झुरमुट अंतरिक्ष की <br>कौली भर चातक की करूण कथा बिखरी <br>मटियाया सा भूरा पानी चमकी टिटीहरी की गुहार <br>थिगलियाँ भरे छीजे आँचल-सी झाऊ की साँसों में सिहरी <br>ज्यों-त्यों बिछी धरा धानी मिल कर सहसा सहमी ठिठकीं <br>हम कुंज-कुंज यमुना-तीरे वे चकित मृगी सी आँखडि़याँ <br>बढ़ चले अटपटे पैरों से छिन लता-गुल्म छिन वानीरे झर!सहसा दर्शन से झंकृत <br>झर झर झर इस अल्हड़ मानस की कड़ियाँद्रुत मंद स्वर आये दल बल ले अभिमानी ये मेघ साहसिक सैलानी! <br><br>
झर - <br>कम्पित फरास की ध्वनि सर सर अंतरिक्ष की कौली कहती थी कौतुक से भर <br>कर मटियाया सा भूरा पानी <br>पुरवा पछवा हरकारों से थिगलियाँ भरे छीजे आँचल-सी <br>कह देगा सब निर्मम हो कर ज्यों-त्यों बिछी धरा धानी <br>दो प्राणों का सलज्ज मर्मर हम कुंजऔत्सुक्य-कुंज यमुनासजल पर शील-तीरे <br>नम्र बढ़ चले अटपटे पैरों इन नभ के प्रहरी तारों से <br>छिन लता-गुल्म छिन वानीरे <br>झर झर झर झर <br>द्रुत मंद स्वर <br>आये दल बल ले अभिमानी <br>ये मेघ साहसिक सैलानी! <br><br>
कम्पित ओ कह देते तो कह देते पुलिनों के ओ नटखट फरास की ध्वनि सर सर <br>! कहती थी कौतुक से भर कर <br>ओ कह देते तो कह देते पुरवा पछवा के हरकारों से <br> नभ के कौतुक कंपित तारों हाँ कह देते तो कह देगा सब निर्मम हो कर <br>देते दो प्राणों का सलज्ज मर्मर <br>लहरों के ओ उच्छवसित हास! औत्सुक्य-सजल पर शीलअब झर-नम्र <br>झर इन नभ स्मृति शेफाली यह युग-सरि का अप्रतिहत स्वर! झर-झर स्मृति के प्रहरी तारों सेपत्ते सूखे जीवन के अंधड़ में पिटते मरूथल के रेणुक कण रूखे! <br><br>
ओ कह देते तो कह देते <br>पुलिनों के ओ नटखट फरास! <br>ओ कह देते तो कह देते <br>पुरवा पछवा के हरकारों <br>नभ के कौतुक कंपित तारों <br>हाँ कह देते तो कह देते <br>लहरों के ओ उच्छवसित हास! <br>पर अब झर-झर <br> स्मृति शेफाली <br>जीवन गति आनी जानी यह युग-सरि का <br>अप्रतिहत स्वर! <br>झर-झर स्मृति के पत्ते सूखे <br>जीवन के अंधड़ में पिटते <br>उठती गिरतीं सूनी साँसें मरूथल के रेणुक कण रूखे! <br><br>लोचन अन्तस प्यासे भूखे
झर - <br>जीवन गति आनी जानी <br>उठती गिरतीं सूनी साँसें <br>लोचन अन्तस प्यासे भूखे <br><br> अलमस्त चल दिये छलिया से <br> ये मेघ साहसिक सैलानी! <br><br/poem>
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