भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सारस अकेले / अज्ञेय

49 bytes removed, 18:38, 1 नवम्बर 2009
}}
[[Category:कविताएँ]]
<poem>
घिर रही है साँझ
हो रहा है समय
घर कर ले उदासी
तौल अपने पंख, सारस दूर के
इस देश में तू है प्रवासी!
घिर रही है साँझ <br>रात! तारे हों न हों हो रहा है समय <br>घर रव हीनता को सघनतर कर ले उदासी <br>दे अंधेरा तौल अपने पंख, सारस दूर के <br>इस देश में तू है प्रवासीअदीन! लिये हिय में चित्र ज्योति प्रदेश का करना जहाँ तुझको सवेरा! <br><br>
रात! तारे हों न हों <br>थिर गयी जो लहर, वह सो जाय रव हीनता को सघनतर कर दे अंधेरा <br>तू अदीन! लिये हिय तीर-तरु का बिम्ब भी अव्यक्त में <br>खो जाय चित्र ज्योति प्रदेश का <br>मेघ मरु मारुत मरण - करना जहाँ तुझको सवेराअब आय जो सो आय! <br><br>
थिर गयी जो लहर, वह सो जाय <br>तीर-तरु का बिम्ब भी अव्यक्त में खो जाय <br>मेघ मरु मारुत मरण - <br>अब आय जो सो आय! <br><br> कर नमन बीते दिवस को, धीर! <br> दे उसी को सौंप <br> यह अवसाद का लघु पल <br> निकल चल! सारस अकेले! <br/poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits