भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
समय क्षण-भर थमा सा:
फिर तोल डैने
उड़ गया पंछी क्षितिज की ओर:
मद्धिम लालिमा ढरकी अलक्षित।
तिरोहित हो चली ही थी कि सहसा
फूट तारे ने कहा: रे समय,
::तू क्या थक गया?
रात का संगीत फिर
तिरने लगा आकाश में।
</poem>