भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>बुझा गया इ…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>बुझा गया इस गृह प्रदीप को
हाय! अचानक कौन समीर,
आज हमारी पर्ण कुटी में
अंधकार हो उठा गभीर।
अभी यहाँ तुमको आना है
अब क्या करूँ कहो हे नाथ
स्वागत कैसे करूँ तुम्हारा
आज यहाँ इस तम के साथ?
वैसे ही तो यहाँ तुम्हारे
योग्य नहीं था कोई साज,
अल्प स्नेह से हाय! एक ही
दीप जला रक्खा था आज।
वह भी हा! बुझ गया अचानक;
चिंता है अब यही विशेष,-
बाहर से ही लौट न जाओ
घर में कहीं अंधेरा देख।
पर यह चिंता व्यर्थ, तुम्हे जब
आना है तो आओगे,
मन्द दीप को ही न देख कर
लौट नहीं तुम जाओगे।
पहुँचेगा तब एक चरण ही
द्वारदेहरी तब जब तक,
सौ सौ दीपावलियाँ गृह को
सुप्रभ कर देंगी तब तक!</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>बुझा गया इस गृह प्रदीप को
हाय! अचानक कौन समीर,
आज हमारी पर्ण कुटी में
अंधकार हो उठा गभीर।
अभी यहाँ तुमको आना है
अब क्या करूँ कहो हे नाथ
स्वागत कैसे करूँ तुम्हारा
आज यहाँ इस तम के साथ?
वैसे ही तो यहाँ तुम्हारे
योग्य नहीं था कोई साज,
अल्प स्नेह से हाय! एक ही
दीप जला रक्खा था आज।
वह भी हा! बुझ गया अचानक;
चिंता है अब यही विशेष,-
बाहर से ही लौट न जाओ
घर में कहीं अंधेरा देख।
पर यह चिंता व्यर्थ, तुम्हे जब
आना है तो आओगे,
मन्द दीप को ही न देख कर
लौट नहीं तुम जाओगे।
पहुँचेगा तब एक चरण ही
द्वारदेहरी तब जब तक,
सौ सौ दीपावलियाँ गृह को
सुप्रभ कर देंगी तब तक!</poem>