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मैं रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी
ज्वालामुखी बेलते हैं पहाड़
भूचाल बेलते हैं घर
सन्नाटे शब्द बेलते हैं, भाटे समुंदर।
रोज़ सुबह सूरज में एक नया उचकुन लगाकर एक नई धाह फेंककर मैं रोटी बेलती हूँ जैसे पृथ्वी<br>पृथ्वी। ज्वालामुखी बेलते हैं पहाड़<br>पृथ्वी– जो खुद एक लोई है भूचाल बेलते हैं घर<br>सूरज के हाथों में सन्नाटे शब्द बेलते हैंरख दी गई है, भाटे समुंदर।<br><br>पूरी की पूरी ही सामने कि लो, इसे बेलो, पकाओ जैसे मधुमक्खियाँ अपने पंखों की छाँह में पकाती हैं शहद।