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|संग्रह=पहला उपदेश / अनिल कुमार सिंह
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नहीं चाहिए मुझे तुम्हारे
सात्विक क्रोध की नपुंसकता का नुस्खा
नहीं चाहिए मुझे तुम्हारे<br>मैं प्रेम करता हूँ और सात्विक क्रोध की नपुंसकता का नुस्खा<br><br>एक स्त्री को घंटों चूमता रह सकता हूँ मैं घृणा करता हूँ और दुश्मन को काटकर फेंक देना चाहता हूँ
मैं प्रेम करता हूँ और<br>सपने हमने भी देखे थे एक स्त्री शिखरों को घंटों चूमता रह सकता हूँ<br>चूमने की महत्त्वाकांक्षा मैं घृणा करता हूँ<br>हममें आई-इससे और दुश्मन को काटकर फेंक देना चाहता हूँ<br><br>हम इनकार नहीं करते
सपने लेकिन हमने भी देखे थे<br>कभी नहीं सोचा शिखरों को चूमने की महत्त्वाकांक्षा<br>हममें आईकि मानव-इससे<br>रक्त से अंकित हम इनकार नहीं करते<br><br>अमूर्त चित्राकृतियाँ हमारी अपनी बैठकों में भी होंगी
लेकिन हमने कभी नहीं सोचा<br>कि मानव-रक्त से अंकित<br>अमूर्त चित्राकृतियाँ हमारी अपनी<br>बैठकों में भी होंगी<br><br> तुम्हें करती होगी-<br>हुसैन की दाढ़ी, हमें<br>अब आकर्षित नहीं करती<br>यह एक देश है, जो लोकतन्त्र है<br>और इसी तथाकथित लोकतन्त्र के सहारे<br>प्रकट होता है तुम्हारा सात्विक क्रोध<br><br>
मैं थूकता हूँ इस पर।
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