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|रचनाकार=अनीता वर्मा
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एक पुराने परिचित चेहरे पर
न टूटने की पुरानी चाह थी
आंखें बेधक तनी हुई नाक
छिपने की कोशिश करता था कटा हुआ कान
दूसरा कान सुनता था दुनिया की बेरहमी को
व्यापार की दुनिया में वह आदमी प्यार का इन्तज़ार करता था
एक पुराने परिचित चेहरे पर<br>न टूटने मैंने जंगल की पुरानी चाह थी<br>आग जैसी उसकी दाढ़ी को छुआ उसे थोड़ा सा क्या नहीं किया जा सकता था काला आंखें बेधक कुछ कोमल कुछ तरल तनी हुई नाक<br>एक हरी नस ज़रा सा हिली जैसे कहती हो छिपने की कोशिश करता था कटा हुआ कान<br>जीवन के जलते अनुभवों के बारे में क्या जानती हो तुम हम वहां चल कर नहीं जा सकते दूसरा कान सुनता था दुनिया की बेरहमी वहां आंखों को<br>चौंधियाता हुआ यथार्थ है और अन्धेरी हवा है व्यापार की दुनिया में वह आदमी प्यार का इन्तज़ार करता था<br><br>जन्म लेते हैं सच आत्मा अपने कपड़े उतारती है और हम गिरते हैं वहीं बेदम
मैंने जंगल की आग जैसी उसकी दाढ़ी को छुआ<br>ये आंखें कितनी अलग हैं इनकी चमक भीतर तक उतरती हुई कहती है प्यार मांगना मूर्खता है उसे थोड़ा सा क्या नहीं वह सिर्फ किया जा सकता था काला<br>है आंखें कुछ कोमल कुछ तरल<br>भूख और दुख सिर्फ सहने के लिए हैं तनी हुई एक हरी नस ज़रा सा हिली जैसे कहती हो<br>मुझे याद आईं विन्सेन्ट वान गॉग की तस्वीरें जीवन के जलते अनुभवों के बारे विन्सेन्ट नीले या लाल रंग में विन्सेन्ट बुखार में क्या जानती हो तुम<br>हम वहां चल कर नहीं जा सकते<br>विन्सेन्ट बिना सिगार या सिगार के साथ वहां विन्सेन्ट दुखों के बीच या हरी लपटों वाली आंखों को चौंधियाता हुआ यथार्थ है और अन्धेरी हवा है<br>के साथ जन्म लेते हैं सच आत्मा अपने कपड़े उतारती है<br>और हम गिरते हैं वहीं बेदम<br><br>या उसका समुद्र का चेहरा
ये आंखें कितनी अलग हैं<br>मैंने देखा उसके सोने का कमरा इनकी चमक भीतर तक उतरती हुई कहती है<br>वहां दो दरवाज़े थे प्यार मांगना मूर्खता है<br>एक से आता था जीवन वह सिर्फ किया जा सकता है<br>दूसरे से गुज़रता निकल जाता था भूख और दुख सिर्फ सहने वे दोनों कुर्सियां अन्तत: खाली रहीं एक काली मुस्कान उसकी तितलियों गेहूं के लिए हैं<br>खेतों मुझे याद आईं विन्सेन्ट वान गॉग की तस्वीरें<br>तारों भरे आकाश फूलों और चिमनियों पर मंडराती थी विन्सेन्ट नीले या लाल रंग में विन्सेन्ट बुखार में<br>और एक भ्रम जैसी बेचैनी विन्सेन्ट बिना सिगार या सिगार के साथ<br>जो पूरी हो जाती थी और बनी रहती थी विन्सेन्ट दुखों के बीच जिसमें कुछ जोड़ा या हरी लपटों वाली आंखों के साथ<br>या उसका समुद्र का चेहरा<br><br>घटाया नहीं जा सकता था
मैंने देखा उसके सोने का कमरा<br>वहां दो दरवाज़े थे<br>एक से आता शान्त पागलपन तारों की तरह चमकता रहा कुछ देर विन्सेन्ट बोला मेरा रास्ता आसान नहीं था जीवन<br>दूसरे से गुज़रता निकल जाता मैं चाहता था<br>उसे जो गहराई और कठिनाई है वे दोनों कुर्सियां अन्तत: खाली रहीं<br>जो सचमुच प्यार है अपनी पवित्रता में एक काली मुस्कान उसकी तितलियों गेहूं के खेतों<br>इसलिए मैंने खुद को अकेला किया तारों भरे आकाश फूलों और चिमनियों पर मंडराती थी<br>मुझे यातना देते रहे मेरे अपने रंग और इन लकीरों में अन्याय छिपे हैं यह सब एक भ्रम जैसी बेचैनी<br>कठिन शान्ति तक पहुंचना था जो पूरी हो जाती थी और बनी रहती थी<br>पनचक्कियां मेरी कमजोरी रहीं जिसमें कुछ जोड़ा या घटाया ज़रूरी है कि हवा उन्हें चलाती रहे मैं गिड़गिड़ाना नहीं जा सकता था<br><br>चाहता आलू खाने वालों और शराव पीने वालों के लिए भी नहीं मैंने उन्हें जीवन की तरह चाहा है
एक शान्त पागलपन तारों की तरह चमकता रहा कुछ देर<br>विन्सेन्ट बोला मेरा रास्ता आसान नहीं था<br>मैं चाहता था उसे जो गहराई और कठिनाई है<br>जो सचमुच प्यार है अपनी पवित्रता में<br>इसलिए मैंने खुद को अकेला किया<br>मुझे यातना देते रहे मेरे अपने रंग<br>इन लकीरों में अन्याय छिपे हैं<br>यह सब एक कठिन शान्ति तक पहुंचना था<br>पनचक्कियां मेरी कमजोरी रहीं<br>ज़रूरी है कि हवा उन्हें चलाती रहे<br>मैं गिड़गिड़ाना नहीं चाहता<br>आलू खाने वालों और शराव पीने वालों के लिए भी नहीं<br>मैंने उन्हें जीवन की तरह चाहा है<br><br> अलविदा मैंने हाथ मिलाया उससे<br>कहो कुछ कुछ हमारे लिए करो<br>कटे होंठों में भी मुस्कराते विन्सेन्ट बोला<br>समय तब भी तारों की तरह बिखरा हुआ था<br>इस नरक में भी नृत्य करती रही मेरी आत्मा<br>फ़सल काटने वाली मशीन की तरह<br>मैं काटता रहा दुख की फ़सल<br>आत्मा भी एक रंग है<br>एक प्रकाश भूरा नीला<br>
और दुख उसे फैलाता जाता है।
</poem>
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