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उमर में डूब जाओ / अभिज्ञात

16 bytes added, 17:17, 4 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अभिज्ञात
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{{KKCatKavita}}<poem>आज तुम संयम की तज पतवार को
मेरी बाँहों के भँवर में डूब जाओ!
मेरे आँगन से तुम्हारी ड्योढ़ी तक
मैं तेरा हर एक क्षण अपना बना लूँ
और तुम मेरी उमर में डूब जाओ!
 
</poem>
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