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|रचनाकार=अभिज्ञात
}}
{{KKCatKavita}}<poem>दुनिया का बाज़ार भला है
खरे परखी हैं व्यापारी
तेरी एक खुशी के बदले
काश कि तुम मीरा हो पाती
मैं घनश्याम अगर हो पाऊँ।
</poem>