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लगातार / अरुण कमल

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|रचनाकार=अरुण कमल
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लगातार बारिश हो रही है लगातार तार-तार
कहीं घन नहीं न गगन बस बारिश एक धार
भींग रहे तरुवर तट धान के खेत मिट्टी दीवार
बाँस के पुल लकश मीनार स्तूप
बारिश लगातार भुवन में भरी ज्यों हवा ज्यों धूप
लगातार बारिश हो रही है लगातार तार-तार<br>कहीं घन नहीं न गगन बस बारिश एक धार<br>भींग रहे तरुवर तट धान के खेत मिट्टी दीवार<br>बाँस के पुल लकश मीनार स्तूप<br>बारिश लगातार भुवन में भरी ज्यों हवा ज्यों धूप<br><br> कोई बरामदे में बैठी चाय पी रही है पाँव पर पाँव धर<br>सोखती है हवा अदरक की गंध<br>मेरी भींगी बरौनियाँ उठती हैं और सोचता हूँ<br>देखूँ और कितना जल सोखता है मेरा शरीर<br>तुम इंद्रधनुष हो| <br><br/poem>
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