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|रचनाकार=अरुण कमल
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मैंने उसे ज़ोर से बजाया कान के पास
तो मेरे भीतर हलचल हुई ख़ूब
और बंदी पानी
तीन आँखों तक आया रास्ता फोड़ता
उतने बड़े घर से भाग खोली में छुपा
पानी
हथेलियों से किवाड़ पीटता
छलछला रहा था।
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