भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
सड़क के दोनों तरफ़
ख़ूब लम्बे पेड़
ऊपर उठकर मिलते हुए
ललाट से सटाते ललाट
छान रहे सूर्य-किरण
जैसे ही आएगी आँधी या बारिश
दौड़ेंगे राहगीर
घंटियाँ धुनते दौड़ेंगे रिक्शे
दौड़ेगा हाथ में हाथ बाँध सारा परिवार
देखते-देखते सूनी पड़ जाएगी यह राह ।
पछाड़ खा रहे हैं अन्धड़ में पेड़
ललाट से ललाट टकराते
मथ रहे हैं बादलों से भरा आकाश
गरजता है गगन
और बिजलियों को देह में सोखने को उद्यत
गरजते हैं धरती की ओर से
ये वृक्ष
ठहरेगा कौन इस राह पर आज
देखेगा कौन इन संघर्षरत वृक्षों का
दुर्द्धर्ष सौन्दर्य ?
</poem>