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सम्बन्ध / अरुण कमल

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|संग्रह=पुतली में संसार / अरुण कमल
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जब आधा रास्ता आ गया
 
तब अचानक कुछ चमका, कोई नस--
 
समुद्र में गिरने के ठीक पहले लगा
 
पीछे सब छोड़ दिया सूखा
 
और अब कुछ हो नहीं सकता था,
 
फिर मैं ने सोचा कितनी देर बहेगा ख़ून
 
अपने आप थक्का बन जाएगा ।
 
तेज़ छुरे-सा ख़ून से सना
 
चमक रहा था धूप में
 
पसीना कंठ के कोटर में जमा ।
 
इतना बोलना ठीक न था मेरा,
 
जो सहती गई इसलिए नहीं कि
 
उसे कुछ कहना न था, बस इसलिए कि
 
मेरे यह कहने पर कि अब बचा ही क्या है
 
उसने उठंगा दी पीठ
 
और देखती रही चुपचाप ढहता हुआ बांध ।
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