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|संग्रह = सबूत / अरुण कमल
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जब मेरा शरीर अस्सी घावों से पटा था
और मैं बहुत मुश्किल से
::::पाँव टेकता
खड़ा हो पाया था लाशों के बीच
::::दोस्तों के चेहरे पहचानता
वे आए
लाशों को लांघते
इत्र लगाए
सफ़ेद रुमाल से नाक दाबे
और कहा-- तुम्हारी वर्दी का एक बटन
::::::टूटा है
हाँ
मैंने माना
बहुत बड़ी चूक है यह
बहुत बड़ा जुर्म
लेकिन श्रीमान अभी मुझे पानी चाहिए
कंठ भिगोने को थोड़ा-सा पानी।
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