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बोलना / अरुण कमल

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|संग्रह = सबूत / अरुण कमल
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{{KKCatKavita}}<poem>
जो आदमी दुख में है
 
:::वह बहुत बोलता है
 
:::बिना बात के बोलता है
 
वह कभी चुप्प और स्थिर बैठ नहीं सकता
 
ज़रा-सी हवा लगते फेंकता लपट
 
:::बकता है लगातार
 
:::ईंट के भट्ठे-सा धधकता
 
 
जो सुखी-सम्पन्न है
 
::सन्तुष्ट है
 
वह कम बोलता है
 
काम की बात बोलता है
 
जो जितना सुखी है उतना ही कम बोलता है
 
जो जितना ताकतवर है उतना ही कम
 
:::वह लगभग नहीं बोलता है
 
:::हाथ से इशारा करता है
 
:::ताकता है
 
:::और चुप्प रहता है
 
 
जिसके चलते चल रहा है युद्ध कट रहे हैं लोग
 
उसने कभी किसी बन्दूक की घोड़ी नहीं दाबी
<poem>
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