भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह = सबूत / अरुण कमल
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
रात के दो बजे हैं
खाँसती जा रही है बच्ची
खाँसते-खाँसते उठ-उठ कर बैठती-छिटकती
कौंधता है रह-रह कर छाती में दर्द
कभी माँ कभी बाप की तरफ़ उमड़ती-घुमड़ती
गर्म तवे पर जल की बूंद-सी
तड़प-तड़प कर नाच रही है बच्ची
दो तट थामे बाढ़
रात के दो बजे
रात के दो बजे हैं
सुख से सोया हैं संसार
और कोई रहड़-कटे खेत की खूँटियों पर
:::::भागता जा रहा है--
चारों तरफ़ से घेरते आ रहे हत्यारे
::::हाथ में छुरा लिए
चमक रहा चांद गिर रही ओस
रात के दो बजे रात के
</poem>