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और तीन दिल चाक हैं / अरुणा राय

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|रचनाकार=अरुणा राय
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<poem>
चन्दन की दो डालियाँ
जब टकराईं
तो पैदा हुई अग्नि
और लगी फैलने
चहुँओर
चन्दन ख़ुशबू तो एक ही थी दोंनों की दो डालियाँ<br>जब टकराईं<br>सो उसने चाहा तो पैदा हुई अग्नि<br>कि रोके इस आग कोपर ख़ुद को खोकर रहीऔर लगी फैलने <br>उधर आग थीचहुँओर<br><br>कि खाक होकर रही
ख़ुशबू तो <br>एक ही थी <br>दोंनों की<br>सो उसने चाहा <br>कि रोके इस आग को<br>पर ख़ुद को <br>खोकर रही<br>उधर आग थी<br>कि खाक होकर रही<br><br> अब <br>न चंदन है<br>ना ख़ुशबू है<br>चतुर्दिक <br>उड़ती हुई राख है<br>
और तीन दिल चाक हैं...
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