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ख़्वाब अब हुस्ने-तसव्वुर के उफ़ुक़<ref>क्षतिज</ref> से है हैं परे
दिल के इक जज़्बा-ए-मासूम ने देखे थे जो ख़्वाब
और ताबीरों के तपते हुए सहराओं में
तश्नगी<ref>प्यास</ref> आब्लापाआबला-पा<ref>जिसके पैरों में छले पडे़ छाले पड़े हुए हों</ref> शो’ला-ब-कफ़ मीजे-सराब<ref>मॄगतृष्णा की तीरगीकीतीरगी</ref>
यह तो मुमकिन नहीं बचपन का कोई दिन मिल जाए
या पलट आये कोई साअते-नायाबे-शबाब<ref>अप्राप्य जवानी का कोई क्षण</ref>
कौन लिख सकता है फिर उम्रे-गुज़श्ता की किताब
बीते लम्हात के सोये हुए तूफ़ानों में
तैरते फिरते हैं फूटी हुई आँखों के हबाबहुबाब<ref>बुलबुले</ref>
ताबिशे-रंगे-शफ़क़<ref>उषा की लालिमा की चमक</ref>, आतिशे-रूए-ख़ुर्शीद<ref>सूर्य के मुख की आग</ref>
मल के चेहरे पे सहर आयी है ख़ूने-अहबाब
आस्तीनों को पुकारेंगे कहाँ तक आँसू
अब तो दामन को पकड़ते हैं लहू के गिर्दाब
देखती फिरती है एक-एक का मुँह खामोशीख़ामोशी
जाने क्या बात है शर्मिन्दा है अन्दाज़े-ख़िताब
दर-ब-दर ठोकरें खाते हुए फिरते हैं सवाल