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{{KKRachna
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
|संग्रह=मेरा सफ़र / अली सरदार जाफ़री
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<poem>
सुब्ह-ए-फ़र्दा<ref>आनेवाले कल की सुबह </ref>
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इसी सरहद पे कल डूबा था सूरज हो के दो टुकडे़
इसी सरहद पे कल ज़ख़्मी हुई थी सुब्हे-आज़ादी