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विकास / त्रिलोचन

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<poem>ईख की पत्ती, कास, सरपत
जो भी काम भर को मिला
उसी से झोपड़ी बना कर रहे।

फिर भीत खडी की
और भीत के बचाव के लिये
मिट्टी तैयार की
और इसी मिट्टी से
ख़पड़े रच कर धूप में सुखाए
फिर अवाँ लगा कर
अच्छी तरह पका कर
घर को मजबोत छाजन दी।

मिट्टी ले लेने से खत्ता जो बन गया
उस में बरसाती जल भर गया-
जिसे लोग बावड़ी, तलैया और पोखरी
के नाम से जानते थे-
बावड़ी में मछलियाँ, कछवे, ढेर सारे जल जीव
आ बसे।
मछलियाँ बिकने लगीं।

24.09.2002</poem>
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