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कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुन्तज़र<ref>चिर-प्रतीक्षित सच्चाई </ref>! नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
के हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं तेरी जबीन-ए-नियाज़<ref>विनम्र माथा माथे</ref> में तरब आशना-ए-ख़रोश<ref>स्वयं को आन्नद-मयी ध्वनि में प्रकट कर </ref> हो तू नवा है महरम-ए-गोश<ref> अपनी कृपा को किसी आवाज़ में प्रकट कर </ref> हो
वो सरूद<ref>स्वर माधुर्य,स्वरावली </ref> क्या के छिपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ओ-साज़<ref>साज़ की चुप्पी के पर्दे </ref> में