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|संग्रह=बहनें और अन्य कविताएँ / असद ज़ैदी
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यह आदमी अपनी पसंद के संगीत में
रास्ते पर आ जाएगा, देखता हुआ
बाक़ाइदगी से माँ को ख़त लिखेगा, ढिबरी जलाकर
जंगल से
यह आदमी रोएगा नहीं जब जिस्म में ख़ून की बहुत कमी होगी
थकान क़ाइदा बन जाएगी रोज़ का तब यह नहीं थकेगा
अख़ीर में इसको भी अहसास हो जाएगा
कि देखो, हारी हुई लड़ाईयाँ कितने काम आती हैं ।
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