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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
मुझे कल मेरा एक साथी मिला
जिस ने ये राज़ खोला
कि "अब जज्बा-ओ-शौक़ की वहशतों के ज़माने गए"
फिर वो आहिस्ता-आहिस्ता चारों तरफ़ देखता
मुझ से कहने लगा
मुझे कल मेरा एक साथी मिला<BR>जिस ने ये राज़ खोला<BR>कि "अब जज्बा-ओ-शौक़ की वहशतों के ज़माने गए"<BR><BR> फिर वो आहिस्ता-आहिस्ता चारों तरफ़ देखता<BR>मुझ से कहने लगा<BR><BR> "अब बिसात-ए-मुहब्बत लपेटो<BR>जहां से भी मिल जाएं दौलत - समटो<BR>ग़र्ज कुछ तो तहज़ीब सीखो"<BR><BR/poem>
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