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[[Category:ग़ज़ल]]
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गिले फ़ुज़ूल थे अहद-ए-वफ़ा के होते हुए
सो चुप रहा सितम-ए-नारवां के होते हुए
ये क़ुर्बतों में अजब फ़ासले पड़े कि मुझे
है आशना की तलब आशना के होते हुए
गिले फ़ुज़ूल थे अहद-ए-वफ़ा के होते हुए <br>वो हिलागर हैं जो मजबूरियाँ शुमार करें सो चुप रहा सितम-ए-नारवां चिराग़ हम ने जलायें हवा के होते हुए <br><br>हुये
ये क़ुर्बतों में अजब फ़ासले पड़े कि मुझे <br>न कर किसी पे भरोसा के कश्तियाँ डूबीं हैं है आशना की तलब आशना ख़ुदा के होते हुये नाख़ुदा के होते हुए <br><br>हुये
वो हिलागर किसे ख़बर है कि कासा-ब-दस्त फिरते हैं जो मजबूरियाँ शुमार करें <br>चिराग़ हम ने जलायें हवा बहुत से लोग सरों पर हुमा के होते हुये <br><br>हुए
न कर किसी पे भरोसा के कश्तियाँ डूबीं हैं <br>"फ़राज़" ऐसे भी लम्हें कभी कभी आये ख़ुदा के होते हुये नाख़ुदा कि दिल गिरिफ़्ता रहा दिलरुबा के होते हुये <br><br>हुए
किसे ख़बर है कि कासा-ब-दस्त फिरते हैं <br>बहुत से लोग सरों पर हुमा के होते हुए <br><br> "फ़राज़" ऐसे भी लम्हें कभी कभी आये <br>कि दिल गिरिफ़्ता रहा दिलरुबा के होते हुए <br><br> कुर्बत = करीबी, हिलागर = जो बहाने बनाये, कासा-ब-दस्त = हाथ में कटोरा लिये हुए,<br>
हुमा = स्वर्ग का पंछी (सौभाग्य की निशानी),
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