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[[Category:ग़ज़ल]]
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हर तमाशाई फ़क़त साहिल से मंज़र देखता
कौन दरिया को उलटता कौन गौहर देखता
वो तो दुनिया को मेरी दीवानगी ख़ुश आ गई
तेरे हाथों में वरना पहला पत्थर देखता
हर तमाशाई फ़क़त साहिल से मंज़र देखता <br>आँख में आँसू जड़े थे पर सदा तुझ को न दी कौन दरिया को उलटता कौन गौहर इस तवक़्क़ो पर कि शायद तू पलट कर देखता <br><br>
वो तो दुनिया को मेरी दीवानगी ख़ुश आ गई <br>तेरे क़िस्मत की लकीरें मेरे हाथों में वरना पहला पत्थर न थीं तेरे माथे पर कोई मेरा मुक़द्दर देखता <br><br>
आँख में आँसू जड़े थे पर सदा तुझ को न दी <br>ज़िन्दगी फैली हुई थी शाम-ए-हिज्राँ की तरह इस तवक़्क़ो पर कि शायद तू पलट किस को इतना हौसला था कौन जी कर देखता <br><br>
मेरी क़िस्मत की लकीरें मेरे हाथों में न थीं <br>डूबने वाला था और साहिल पे चेहरों का हुजूम तेरे माथे पर कोई मेरा मुक़द्दर पल की मोहलत थी मैं किस को आँख भर के देखता <br><br>
ज़िन्दगी फैली हुई थी शाम-ए-हिज्राँ की तरह <br>किस को इतना हौसला था कौन जी कर देखता <br><br> डूबने वाला था और साहिल पे चेहरों का हुजूम <br>पल की मोहलत थी मैं किस को आँख भर के देखता<br><br>  तू भी दिल को इक लहू की बूँद समझा है "फ़राज़" <br>आँख गर होती तो क़तरे में समन्दर देखता <br><br/poem>
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