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|संग्रह=मेरे बाद मेरा घर / आग्नेय
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सीना तानकर चलता हूँ दिन-रात
गजराज की तरह झूमता हूँ सड़कों पर
अपने मित्रों और शत्रुओं के समक्ष
दम्भ से भरी रहती है मेरी मुखाकृति--मेरी वाणी
अलस्स सवेरे गुज़रता हूँ उस सड़क पर
जिसके बाईं ओर शमशान है
विनम्र हो जाता हूँ चींटी की तरह
आज स्वयं चलकर आया हूँ यहाँ तक
कल लाया जाऊंगा कन्धों पर यहाँ तक
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