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इंतज़ार की रात / इब्ने इंशा

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उमड़ते आते हैं शाम के साये
 
दम-ब-दम बढ़ रही है तारीकी
 
एक दुनिया उदास है लेकिन
 
कुछ से कुछ सोचकर दिले-वहशी
 
मुस्कराने लगा है- जाने क्यों ?
 
वो चला कारवाँ सितारों का
 
झूमता नाचता सूए-मंज़िल
 
वो उफ़क़ की जबीं दमक उट्ठी
 
वो फ़ज़ा मुस्कराई, लेकिन दिल
 
डूबता जा रहा है - जाने क्यों ?
 
 
उफ़क़=क्षितिज; जबीं=मस्तक
 
(रचनाकाल : 1945)
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