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|संग्रह= जिद मछली की / इला कुमार
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सड़क की खुरदरी सतह हो
या सुचिक्कन प्रासाद का प्रवेशद्वार
कोई बढ़ता चलता है
हर पल पर साथ साथ
निर्जन वनों में
ऊंचे पहाड़ों तले फैली विस्तृत चरागाहों में
शांत उदास सडकों पर
किसी भी अमूर्त से पलांश में
अचानक अवतरित हो उठता है पाशर्व में
भरमाता-सा
अपनी उदार बाहों में भर चौंका देता है
एक दिलासा
मैं हूँ
हर पल तुम्हारे साथ
हर पग को थामता
सूर्य का यह अश्रांत आविर्भाव
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