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उनको प्रणाम / नागार्जुन

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[[Category:नागार्जुन]]
[[Category:कविताएँ]]
{{KKSandarbh
|लेखक=नागार्जुन
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|प्रकाशक=
|वर्ष=
|पृष्ठ=
}}

जो नहीं हो सके पूर्ण–काम<br>
मैं उनको करता हूँ प्रणाम।<br><br>

कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट<br>
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए;<br>
रण की समाप्ति के पहले ही<br>
जो वीर रिक्त तूणीर हुए!<br>
उनको प्रणाम!<br><br>

जो छोटी–सी नैया लेकर<br>
उतरे करने को उदधि–पार;<br>
मन की मन में ही रही¸ स्वयं<br>
हो गए उसी में निराकार!<br>
उनको प्रणाम!<br><br>

जो उच्च शिखर की ओर बढ़े<br>
रह–रह नव–नव उत्साह भरे;<br>
पर कुछ ने ले ली हिम–समाधि<br>
कुछ असफल ही नीचे उतरे!<br>
उनको प्रणाम<br><br>

एकाकी और अकिंचन हो<br>
जो भू–परिक्रमा को निकले;<br>
हो गए पंगु, प्रति–पद जिनके<br>
इतने अदृष्ट के दाव चले!<br>
उनको प्रणाम<br><br>

कृत–कृत नहीं जो हो पाए;<br>
प्रत्युत फाँसी पर गए झूल<br>
कुछ ही दिन बीते हैं¸ फिर भी<br>
यह दुनिया जिनको गई भूल!<br>
उनको प्रणाम!<br><br>

थी उम्र साधना, पर जिनका<br>
जीवन नाटक दु:खांत हुआ;<br>
या जन्म–काल में सिंह लग्न<br>
पर कुसमय ही देहांत हुआ!<br>
उनको प्रणाम<br><br>

दृढ़ व्रत औ' दुर्दम साहस के<br>
जो उदाहरण थे मूर्ति–मंत?<br>
पर निरवधि बंदी जीवन ने<br>
जिनकी धुन का कर दिया अंत!<br>
उनको प्रणाम!<br><br>

जिनकी सेवाएँ अतुलनीय<br>
पर विज्ञापन से रहे दूर<br>
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके<br>
कर दिए मनोरथ चूर–चूर!<br>
उनको प्रणाम! <br><br>