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{{KKCatGhazal}} <poem>
नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
 
लड़ाई की मगर तैयारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
 मुलाक़ातों पे हँसते , बोलते हैं , मुस्कराते हैं 
तबीयत में मगर बेज़ारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
 खुले रखते हैं दरवाज़े दिलों के रात -दिन दोनों 
मगर सरहद पे पहरेदारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
 उसे हालात ने रोका मुझे मेरे मसायल <ref>समस्याओं</ref> ने 
वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
 मेरा दुश्मन मुझे तकता है , मैं दुश्मन को तकता हूँ  कि हायल <ref>बाधक</ref> राह में किलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं 
मुझे घर भी बचाना है वतन को भी बचाना है
 
मिरे कांधे पे ज़िम्मेदारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
</poem> मसायल=समस्याओं; हायल=बाधक{{KKMeaning}}
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