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अलअमाँ मेरे ग़मकदे की शाम / आरज़ू लखनवी
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18:05, 9 नवम्बर 2009
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<poem>
अलअमाँ मेरे ग़मकदे की शाम।
सुर्ख़ शोअ़ला सियाह हो जाये॥
पाक निकले वहाँ से कौन जहाँ ।
उज़्रख़्वाही गुनाह हो जाये॥
इन्तहाये-करम वो है कि जहाँ।
बेगुनाही गुनाह हो जाये॥
</poem>
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