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|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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नैरंगियाँ चमन की तिलिस्मे-फ़रेब हैं।
अब तक वो चारासाज़िए-चश्मेकरम है याद।
फाहा वहाँ लगाते थे, चरका जहाँ न था॥
 
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