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|रचनाकार = आलोक धन्वा
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<poem>
एक
एक<br><br>घर की जंजीरें कितना ज्यादा दिखाई पड़ती हैं जब घर से कोई लड़की भागती है
घर क्या उस रात की जंजीरें<br>याद आ रही है कितना ज्यादा दिखाई पड़ती हैं<br>जो पुरानी फिल्मों में बार-बार आती थी जब घर से भी कोई लड़की भागती है<br><br>घर से भगती थी? बारिश से घिरे वे पत्थर के लैम्पपोस्ट महज आंखों की बेचैनी दिखाने भर उनकी रोशनी?
क्या उस रात की याद आ रही है<br>जो पुरानी फिल्मों में बार-बार आती थी<br>जब भी कोई लड़की घर से भगती थी?<br>बारिश से घिरे और वे पत्थर तमाम गाने रजतपरदों पर दीवानगी के लैम्पपोस्ट<br>महज आंखों की बेचैनी दिखाने भर उनकी रोशनी?<br><br>आज अपने ही घर में सच निकले!
और क्या तुम यह सोचते थे कि वे तमाम गाने रजतपरदों पर दीवानगी महज अभिनेता-अभिनेत्रियों के<br>लिए रचे गए? और वह खतरनाक अभिनय लैला के ध्वंस का जो मंच से अटूट उठता हुआ आज अपने ही घर दर्शकों की निजी जिन्दगियों में सच निकले!<br><br>फैल जाता था?
क्या तुम यह सोचते थे <br>कि वे गाने महज अभिनेता-अभिनेत्रियों के लिए<br>रचे गए?<br>और वह खतरनाक अभिनय<br>लैला के ध्वंस का<br>जो मंच से अटूट उठता हुआ<br>दर्शकों की निजी जिन्दगियों में फैल जाता था?<br><br>दो
दो<br><br>तुम तो पढ कर सुनाओगे नहीं कभी वह खत जिसे भागने से पहले वह अपनी मेज पर रख गई तुम तो छुपाओगे पूरे जमाने से उसका संवाद चुराओगे उसका शीशा उसका पारा उसका आबनूस उसकी सात पालों वाली नाव लेकिन कैसे चुराओगे एक भागी हुई लड़की की उम्र जो अभी काफी बची हो सकती है उसके दुपट्टे के झुटपुटे में?
तुम तो पढ कर सुनाओगे नहीं<br>उसकी बची-खुची चीजों को कभी वह खत<br>जला डालोगे? जिसे भागने से पहले<br>उसकी अनुपस्थिति को भी जला डालोगे? वह अपनी मेज पर रख गई<br>तुम तो छुपाओगे पूरे जमाने जो गूंज रही है उसकी उपस्थिति से<br>उसका संवाद<br>बहुत अधिक चुराओगे उसका शीशा उसका पारा<br>उसका आबनूस<br>उसकी सात पालों वाली नाव<br>लेकिन कैसे चुराओगे<br>एक भागी हुई लड़की सन्तूर की उम्र<br>तरह जो अभी काफी बची हो सकती है<br>उसके दुपट्टे के झुटपुटे केश में?<br><br>
उसकी बची-खुची चीजों को<br>जला डालोगे?<br>उसकी अनुपस्थिति को भी जला डालोगे?<br>जो गूंज रही है उसकी उपस्थिति से<br>बहुत अधिक<br>सन्तूर की तरह<br>केश में<br>तीन
तीन <br><br>उसे मिटाओगे एक भागी हुई लड़की को मिटाओगे उसके ही घर की हवा से उसे वहां से भी मिटाओगे उसका जो बचपन है तुम्हारे भीतर वहां से भी मैं जानता हूं कुलीनता की हिंसा !
उसे मिटाओगे<br>एक भागी हुई लड़की को मिटाओगे <br>लेकिन उसके ही घर भागने की हवा से<br>बात उसे वहां याद से भी मिटाओगे<br>उसका जो बचपन है तुम्हारे भीतर<br>वहां से भी<br>मैं जानता हूं<br>नहीं जाएगी कुलीनता पुरानी पवनचिक्कयों की हिंसा !<br><br>तरह
लेकिन उसके भागने की बात<br>याद से वह कोई पहली लड़की नहीं जाएगी<br>है जो भागी है और न वह अन्तिम लड़की होगी अभी और भी लड़के होंगे और भी लड़कियां होंगी पुरानी पवनचिक्कयों की तरह<br><br>जो भागेंगे मार्च के महीने में
वह कोई पहली लड़की नहीं भागती है<br>जो भागी है<br>जैसे फूलों गुम होती हुई और न वह अन्तिम लड़की होगी<br>तारों में गुम होती हुई अभी और भी लड़के होंगे<br>और भी लड़कियां होंगी<br>तैराकी की पोशाक में दौड़ती हुई जो भागेंगे मार्च के महीने खचाखच भरे जगरमगर स्टेडियम में<br><br>
लड़की भागती है<br>जैसे फूलों गुम होती हुई<br>तारों में गुम होती हुई<br>तैराकी की पोशाक में दौड़ती हुई<br>खचाखच भरे जगरमगर स्टेडियम में<br><br>चार
चार<br><br>अगर एक लड़की भागती है तो यह हमेशा जरूरी नहीं है कि कोई लड़का भी भागा होगा
अगर एक लड़की भागती है<br>कई दूसरे जीवन प्रसंग हैं तो यह हमेशा जरूरी नहीं जिनके साथ वह जा सकती है<br>कि कोई लड़का कुछ भी भागा होगा<br><br>कर सकती है महज जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है
कई दूसरे जीवन प्रसंग हैं<br>तुम्हारे उस टैंक जैसे बंद और मजबूत जिनके साथ वह जा सकती है<br>घर से बाहर कुछ भी कर सकती है<br>लड़कियां काफी बदल चुकी हैं महज जन्म देना ही स्त्री होना मैं तुम्हें यह इजाजत नहीं है<br><br>दूंगा कि तुम उसकी सम्भावना की भी तस्करी करो
तुम्हारे उस टैंक जैसे बंद और मजबूत <br>वह कहीं भी हो सकती है घर से बाहर<br>गिर सकती है लड़कियां काफी बदल चुकी हैं<br>बिखर सकती है मैं तुम्हें यह इजाजत नहीं दूंगा<br>लेकिन वह खुद शामिल होगी सब में कि तुम उसकी सम्भावना की गलतियां भी तस्करी करो<br><br>खुद ही करेगी सब कुछ देखेगी शुरू से अंत तक अपना अंत भी देखती हुई जाएगी किसी दूसरे की मृत्यु नहीं मरेगी
वह कहीं भी हो सकती है<br>गिर सकती है<br>बिखर सकती है<br>लेकिन वह खुद शामिल होगी सब में<br>गलतियां भी खुद ही करेगी <br>सब कुछ देखेगी शुरू से अंत तक<br>अपना अंत भी देखती हुई जाएगी<br>किसी दूसरे की मृत्यु नहीं मरेगी<br><br>पांच
पांच<br><br>लड़की भागती है जैसे सफेद घोड़े पर सवार लालच और जुए के आरपार जर्जर दूल्हों से कितनी धूल उठती है
लड़की भागती है<br>तुम जैसे सफेद घोड़े पर सवार<br>जो पत्नियों को अलग रखते हो वेश्याओं से लालच और जुए के आरपार<br>प्रेमिकाओं को अलग रखते हो जर्जर दूल्हों पत्नियों से<br>कितनी धूल उठती कितना आतंकित होते हो जब स्त्री बेखौफ भटकती है<br><br>ढूंढती हुई अपना व्यक्तित्व एक ही साथ वेश्याओं और पत्नियों और प्रमिकाओं में !
तुम<br>जो<br>पत्नियों को अलग रखते अब तो वह कहीं भी हो<br>वेश्याओं से <br>और प्रेमिकाओं को अलग रखते हो<br>पत्नियों से<br>कितना आतंकित होते हो<br>जब स्त्री बेखौफ भटकती सकती है<br>ढूंढती हुई अपना व्यक्तित्व<br>उन आगामी देशों में जहां प्रणय एक ही साथ वेश्याओं और पत्नियों<br> और प्रमिकाओं में !<br><br>काम होगा पूरा का पूरा
अब तो वह कहीं भी हो सकती है<br>उन आगामी देशों में<br>जहां प्रणय एक काम होगा पूरा का पूरा<br>छह
छह<br>कितनी-कितनी लड़कियां भागती हैं मन ही मन अपने रतजगे अपनी डायरी में सचमुच की भागी लड़कियों से उनकी आबादी बहुत बड़ी है
कितनी-कितनी लड़कियां<br>भागती हैं मन ही मन<br>अपने रतजगे अपनी डायरी में<br>सचमुच की क्या तुम्हारे लिए कोई लड़की भागी लड़कियों से<br>उनकी आबादी बहुत बड़ी है<br><br>?
क्या तुम्हारे लिए कोई लड़की भागीतुम्हारी रातों में एक भी लाल मोरम वाली सड़क नहीं?<br><br>
क्या तुम्हारी रातों तुम्हें दाम्पत्य दे दिया गया? क्या तुम उसे उठा लाए अपनी हैसियत अपनी ताकत से? तुम उठा लाए एक ही बार में<br>एक स्त्री की तमाम रातें उसके निधन के बाद की भी लाल मोरम वाली सड़क नहीं?<br><br>रातें !
क्या तुम्हें दाम्पत्य दे दिया गया?<br>क्या तुम उसे उठा लाए<br>अपनी हैसियत अपनी ताकत से?<br>तुम उठा लाए नहीं रोए पृथ्वी पर एक ही बार में<br>भी एक किसी स्त्री की तमाम रातें<br>उसके निधन के बाद की भी रातें !<br><br>सीने से लगकर
तुम नहीं रोए पृथ्वी पर एक बार भी<br>सिर्फ आज की रात रुक जाओ तुमसे नहीं कहा किसी स्त्री ने सिर्फ आज की रात रुक जाओ कितनी-कितनी बार कहा कितनी स्त्रियों ने दुनिया भर में समुद्र के सीने से लगकर<br><br>तमाम दरवाजों तक दौड़ती हुई आयीं वे
सिर्फ आज की रात रुक जाओ<br>तुमसे नहीं कहा किसी स्त्री ने<br>सिर्फ आज की रात रुक जाओ<br>कितनी-कितनी बार कहा कितनी स्त्रियों ने दुनिया भर में<br>समुद्र के तमाम दरवाजों तक दौड़ती हुई आयीं वे<br><br> सिर्फ आज की रात रुक जाओ<br>और दुनिया जब तक रहेगी<br>
सिर्फ आज की रात भी रहेगी
</poem>
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