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Kavita Kosh से
|रचनाकार=नोमान शौक़
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क़तरा क़तरा
हम नज़रें बचाते हैं
भागना चाहते हैं दामन झटक कर
बाध्य कर देती है क़लम को
घिसटते, थके पैरों से
अस्पताल के दरवाज़े भी बंद होते हैं
निजात के रास्तों की तरह।
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