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|संग्रह=
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>अब कौन से मौसम से कोई आस लगाए
बरसात में भी याद जब न उनको हम आए
मिटटी की महक साँस की खुशबू ख़ुश्बू में उतर कर
भीगे हुए सब्जे की तराई में बुलाए
ज़रदाई हुई रुत को हरा रंग पिलाए
बूंदों बूँदों की छमाछम से बदन काँप रहा है
और मस्त हवा रक़्स की लय तेज़ कर जाए
शाखें हैं तो वो रक़्स में, पत्ते हैं तो रम में
पानी का नशा है की कि दरख्तों को चढ़ जाए
हर लहर के पावों से लिपटने लगे घूँघरू
अंगूर की बेलों पे उतर आए सितारे
रुकती हुई बारिश ने भी क्या रंग दिखाए
</poem>
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