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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
}}
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<poem>
चीड़ के मगरूर पेड़
जिनकी आँखें
अपनी क़ामत<ref>देह</ref> के नशे में सिर्फ़ ऊपर देखती हैं
अपनी गर्दन के तनाव को कभी तो कम करें
और नीचे देखें
वो घने बादल जो उनके पाँव को छूकर गुज़र जाते हैं
जिनको चूम सकते हैं
वो पौधे
प्यार के इस वालिहाना<ref>प्रेमपूर्वक</ref> लम्स से कैसे निखर आए
</poem>
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चीड़ के मगरूर पेड़
जिनकी आँखें
अपनी क़ामत<ref>देह</ref> के नशे में सिर्फ़ ऊपर देखती हैं
अपनी गर्दन के तनाव को कभी तो कम करें
और नीचे देखें
वो घने बादल जो उनके पाँव को छूकर गुज़र जाते हैं
जिनको चूम सकते हैं
वो पौधे
प्यार के इस वालिहाना<ref>प्रेमपूर्वक</ref> लम्स से कैसे निखर आए
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