भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

महुए का मधुपर्व / त्रिलोचन

1,258 bytes added, 01:53, 12 नवम्बर 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन }}<poem>महुए नें कूचे लिए इन कूचे से मोतिय…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>महुए नें कूचे लिए
इन कूचे से मोतियों जैसे फूल
रात में झरे और सवेरा हो जाने पर भी झरते रहे।

सवेरा होने पर चँगेरी में चुनने के लिए
लड़्कियाँ आईं, रात में जानवर इन फूलों को
खाते रहे, मन भर जाने पर मनचाही जगह गए।

महुए में फल आए, फल कच्चे भी उपयोग में
रहे, पकने पर फूलों के समान ही, फलों के भी
पशुओं, चिड़ियों और आदमियों नें अपने अपने
अंश ग्रहण किए।

फलों के भीतर ही महुए का बीज भी मिलता
है। इन बीजों से तेल निकाला जाता है, जो
विविध कामों में आदमी को व्यस्त रखता
है।</poem>
750
edits