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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …
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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
}}
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<poem>
ऐ रे पेड़ तेरे कितने पात
इतने
जितने गगन में तारे
या जितने वन में फूल
जितनी सागर की लहरें
जितनी मेरी माँग में धूल
तेरी सुंदर हरियाली का और न छोर कोई
जग की धूप तेरी छाया से छोटी है
मैं तेरे साए में जैसे जैसे सिमटती जाऊँ
अपने दुखते माथे जलती आत्मा पर से शबनम चुनती जाऊँ
ऐ रे पेड़ तेरे कितने हात
</poem>
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ऐ रे पेड़ तेरे कितने पात
इतने
जितने गगन में तारे
या जितने वन में फूल
जितनी सागर की लहरें
जितनी मेरी माँग में धूल
तेरी सुंदर हरियाली का और न छोर कोई
जग की धूप तेरी छाया से छोटी है
मैं तेरे साए में जैसे जैसे सिमटती जाऊँ
अपने दुखते माथे जलती आत्मा पर से शबनम चुनती जाऊँ
ऐ रे पेड़ तेरे कितने हात
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