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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
}}
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<poem>
नवेद कोई बनाम-ए-मौसम
न तहनियत कोई चश्म ऐ नाम को
न मुस्कराने का था सबब कुछ
मगर मिले तो
ख़ुशी छुपाए न छुप रही थी
हम अपनी आवाज़ सुन के हैरान हो रहे थे
हमारे लहज़े में
रात में होने वाली बारिश खनक रही थी
</poem>
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|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
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नवेद कोई बनाम-ए-मौसम
न तहनियत कोई चश्म ऐ नाम को
न मुस्कराने का था सबब कुछ
मगर मिले तो
ख़ुशी छुपाए न छुप रही थी
हम अपनी आवाज़ सुन के हैरान हो रहे थे
हमारे लहज़े में
रात में होने वाली बारिश खनक रही थी
</poem>